Thursday, March 28, 2013

ओ अप्सरा

तेरे छरहरे बदन की जो गोलाईया हैं,
मदभरे मन की वो अंगडाइयाँ हैं।

ओ सिंहकटी,
तू कहा चली,
तेरे कमर के हिचकोलों पे,
मेरे दिल की गती बढ़ी।

तेर होठोंपे जो अंगूरी हाला हैं,
मेरे प्यासें अधरोंको वो पानी है।

ओ गजगामिनी,
तेरी राह तकि,
तेरे आनेकी आहट से भी,
मेरे दिल की गती बढ़ी।

तेरे नयनोंकी की जो बादामी गेहराइया हैं,
उनमे मेरे आँखों की धुंधली परछाईयाँ हैं।

ओ मृगनयना,
तुमसे नज़र मिली,
तेरी पलकें झुकी,
तो मेरे दिल की गती बढ़ी।

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